आपने कई कथाओ और पुराणों को पढ़ा होगा लेकिन आज में आपको एक ऐसी शक्ति के बारे में बता रहा हूँ जिसका सामना करने से समय काल भी डरता है इससे युद्ध करने से भगवान शिव भी घबरा गये फिर भगवान् शिव को इसके पैरो में गिरना पड़ा दुनिया में इस शक्ति का कोई भी सामना नही कर सकता इस शक्ति को लोग माँ काली के नाम से जानते है जाने इसके बारे में कि इन्हैं काली क्यों कहा जाता है।

एक बार रक्तबीज नाम के एक दैत्य ने कठोर तपस्या से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि उसके शरीर से एक बूँद रक्त गिरते ही उससे हजारो दैत्य पैदा हो जाएगे लेकिन कुछ ही दिनों के बाद इसने अपनी शक्तियों का प्रयोग निर्दोष लोगो को सताने हेतु करना शरू कर दिया धीरे धीरे उसने तीनो लोकों में अपने नाम का डंका बजा दिया और देवताओ को युद्ध के लिए ललकारने लगा देवताओ ने इससे युद्ध करते समय अपनी पूरी शक्ति लगा दी लेकिन वह इसे हरा नही सके क्योंकि इसके शरीर से एक बूँद खून की गिरते ही हजारो दैत्य पैदा हो जाते थे ।
देवता भयभीत हो गए उन्होंने तुरंत माँ दुर्गा की सहायता लेने का विचार बनाया, सभी ने मिलकर माँ दुर्गा के पास आकर प्रार्थना की तब माँ दुर्गा युद्ध भूमि में दैत्य का सामना करने के लिए टूट पड़ीं माँ दुर्गा ने राक्षसो को मारना शुरू किया लैकिन रक्तबीज को नही मार पा रहीं थीं क्योंकि रक्तबीज के रक्त की एक बूंद धरती पर गिरते है हजारो रक्तबीज पैदा होजाते थे।तब दुर्गा माँ ने महाकाली का भयंकर रुप प्रकट किया जो माँ दुर्गा के सुन्दर रूप के स्थान पर एक डरावना स्वरुप है महाकाली ने देवताओ की रक्षा करने के लिये यह बिकराल रूप धारण कर लिया और उसके बाद माँ काली ने अपनी जीभ का विस्तार किया अब दानबो का खून धरती पर गिरने के बजाय उनकी जीभ पर गिरने लगा इस तरह वो दानबो को मारती चली गईं कोई भी दानव शेष नही बचा और अंत में महाकाली ने रक्तजीब को भी मार दिया। लेकिन इस बीच महा काली का गुस्सा इतना भयंकर रूप ले चुका था की उन्हें शांत करना नामुमकिन था उनके पास जाने से सारे देवता डरने लगे उसके बाद सभी देवता मिलकर भोले शंकर के पास गए और उनसे माँ काली के गुस्से को शांत करने की प्रार्थना की,भगवान् शिव ने देवताओ की बात मान ली और उसके बाद बो माँ काली के गुस्से को शांत करने के लिए निकल पड़े उन्होंने सारे प्रयास कर लिए लेकिन माँ काली का गुस्सा जब शांत नही हुआ क्योंकि उनके मार्ग में जो भी आ रहा था माँ उसी का संहार कर रहीं थी जब कुछ भी उपाय नही बचा तो भोले शंकर उनके चरणों में जाकर लेट गए और जब माँ काली उनके ऊपर चढ़ती चली गईं और जब गर्दन तक पहुँच कर टकराईं तो उन्हें वास्तविकता समझ आई इस प्रकार खुद को भगवान शंकर के ऊपर चढ़ा देख माँ काली की जीभ बाहर आ गई इस प्रकार माँ का गुस्सा शांत हुआ।