कंही की ईंट कंही का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा, कौन थी भानुमति ये सवाल का जवाब बहुत कम ही लोग दे पाते हैं क्योंकि इस पात्र का विशेष रूप से वर्णन नहीं किया गया है महा ग्रन्थ महाभारत में. जी हाँ भानुमति महाभारत की पात्र थी और इसी पर ये कहावत बनी है।
इस कहावत को जानने के लिए पूरी कहानी को जानना जरुरी है, भानुमति काम्बोज के राजा चंद्रवर्मा की पुत्री थी, राजा ने उसके विवाह के लिए स्वयंवर रखा. स्वयंवर में शिशुपाल, जरासंध,रुक्मी,वक्रऔर दुर्योधन आदि समेत बहुत से राजा आमंत्रित थे. जब भानुमति हाथ में माला लेकर अपनी दासियों और अंगरक्षकों के साथ दरबार में आई तो दुर्योधन की बाँछे खिल उठीं।
जब भानुमति दुर्योधन के सामने आकर रुकी और थोड़ा रुक कर आगे बढ़ गई, ये बात दुर्योधन को अच्छी नहीं लगी और वह भानुमति की तरफ लपका और उसके हाथ की वरमाला जबरदस्ती अपने गले में डाल ली, विरोध करने पर दुर्योधन ने सब योद्धाओ को कर्ण से युद्ध करने की चुनौती दी जिसमे कर्ण ने सभी को परास्त कर दिया।
भानुमति को हस्तिनापुर ले आने के बाद दुर्योधन ने उसे यह कह अपनी बात को सही ठहराया कि भीष्म पितामह भी अपने सौतेले भाइयो के लिए अम्बा अम्बिका औरअम्बा-लिका का हरण कर के ले आये थे।इसी तर्क से भानुमति भी मान गई और दोनों ने विवाह कर लिया। दोनो के दो संतान हुई और पुत्र का लक्ष्मण रखा गया जिसे अभिमन्यु ने युद्ध में मार दिया और पुत्री का नाम था लक्ष्मणा जिसका विवाह भगवान श्री कृष्ण के जाम्बन्ती से जन्मे पुत्र साम्ब से विवाह हुआ।और इसी कारण ये कहावत बनी, भानुमति ने दुर्योधन को पति नही चुना था बल्कि दुर्योधन ने जबरदस्ती की शादी थी। और वो भी अपने दम पर नहीं अपितु कर्ण के दम पर की थी।जैसे भानुमति का हरण दुर्योधन ने किया था , उसी प्रकार इसकी बेटी लक्ष्मणा को कृष्ण का पुत्र साम्ब भगा ले गया, इस तरह की विस्मृतियो के कारण ये कहावत चरिर्तार्थ होती है.
भानुमति के बारे में एक और खास बात यह है कि दुर्योधन उस पर बेहद विश्वास करता था, एक बार भानुमति एक बार भानुमति और कर्ण शतरंज खेल रहे थे। भानुमति हार रही थी तो कर्ण प्रसन्न था,
इतने में दुर्योधन के आने की आहट हुई तो भानुमति सहसा ही खेल छोड़ के उठने लगी।
यह देखकर कर्ण को लगा की वह हार के डर से भाग रही है। इसलिए उसने भानुमती का का अंचल झपटा,अचानक ही की गई इस हरकत से भानुमति का अॉंचल फट गया और उसकेसारे मोती भी वहीं बिखर गए। ऐसा होना था की कर्ण को भी दुर्योधन आता हुआ दिखाई दिया. दोनों शर्म से मरे जा रहे थे।उन्हें डर सता रहा था कि अब दुर्योधन क्या समझेगा।अगर कोई भी मर्द अपने कक्ष में दूसरे पुरुष के साथ अगर अपनी पत्नी को इस हालत में देखेगा जिसकी कमर पूरी दिख रही हो और अाँचल फटा हुआ तो वो क्या समझेगा.जब दुर्योधन निकट आया तो दोनों उससे आँख नहीं मिला पा रहे थे,तब दुर्योधन ने हँस कर कहा की मोती बिखरे रहने दोगे या मैं तुम्हारी मदद करूं मोतीसमेटने में। यह बात दुर्योधन के चरित्र की ऊँचाई को व्यक्त करती है की वो अपने
परम मित्र कर्ण और अपनी जबरदस्ती शादी की हुई पत्नी पर कितना विश्वास करता था.