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Tuesday, October 4, 2016

जब कर्ण के बरदान माँगने पर दुविधा में आ गये थे भगवान

महाभारत का एक महान पात्र  है  दानवीर कर्ण | उनके साथ हुए अन्यायों एवं उनकी दानवीरता के कारण अधिकतर लोग उनके प्रति सहानभूति रखते है |लेकिन कर्ण के सिद्धांतो एवं उनके मौलिक कर्तव्यो के कारण भगवान कृष्ण उन्हें महान योद्धा मानते थे | 
महाभारत में ही एक रोचक कथा के अनुसार अर्जुन के प्राण बचाने के लिए इंद्र ने  कर्ण का कवच और दिव्य कुंडल ले लिए थे | लेकिन इसके बाद  श्रीकृष्ण कर्ण की परीक्षा लेने के लिए आए थे जिस परीक्षा में कर्ण सफल हुए थे | तब श्रीकृष्ण ने कर्ण से प्रभावित होकर वरदान मांगने को कहा था |आइए अब पढ़े श्रीकृष्ण और कर्ण से जुड़ी हुई कहानी | जब कर्ण

मृत्युशैया पर थे तब कृष्ण उनके पास उनके दानवीर होने की परीक्षा लेने के लिए आए | कर्ण ने कृष्ण को कहा कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है, ऐसे में कृष्ण ने उनसे उनका सोने का दांत मांग लिया | कर्ण ने अपने समीप पड़े पत्थर को उठाया और उससे अपना दांत तोड़कर कृष्ण को दे दिया और कर्ण ने एक बार फिर अपने दानवीर होने का प्रमाण दिया जिससे कृष्ण काफी प्रभावित हुए |कृष्ण ने कर्ण से कहा कि वह उनसे कोई भी वरदान मांग़ सकते हैं, इस पर कर्ण ने कृष्ण से कहा कि एक निर्धन सूत पुत्र होने की वजह से उनके साथ बहुत छल हुए हैं | अगली बार जब कृष्ण धरती पर आएं तो वह पिछड़े वर्ग के लोगों के जीवन को सुधारने के लिए प्रयत्न करें | इसके साथ कर्ण ने दो और वरदान मांगे दूसरे वरदान के रूप में करण ने माँगा की अगले जन्म में भगवान उनके राज्य में जन्म ले |तीसरा वरदान उन्होंने कृष्ण से ये माँगा की मेरा अन्तिम संस्कार ऐसे जगह पर हो जहाँ कोई पाप न हुआ हो | इस वरदान को सुन कृष्ण दुविधा में आ गए क्योकि पूरी पृथ्वी में कोई ऐसा स्थान नही है जहाँ पाप हुआ न हो | तब भगवान कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार अपने हाथो में किया और इस प्रकार कर्ण मृत्यु के पश्चात साक्षात वैकुण्ठ धाम को प्राप्त हुए |

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