एक
बार राजा अम्बरीश के दरबार में रत्नों की जानकारी के विषय पर चर्चा हो रही थी उस
समय इस विषय का कोई जानकार वहाँ नही था तभी महर्षि पाराशर वहाँ प्रकट हुये और
उन्हौने भगवान शंकर और माता पार्वती का रत्नों के विषय पर संबाद सभा में सुनाया
जिसमें रत्नों के भेद के विषय में जानकारी थी जो इस प्रकार है।
भगवान
शंकर के अनुसार लोकों के अनुसार इस त्रिलोकी में तीनों लोकों में अलग अलग प्रकार
के रत्न पाये जाते हैं।
1.
स्वर्गलोक के रत्न :----
स्वर्गलोक में चार प्रकार की
मणियाँ पायी जाती हैं।
अ.
चिन्तामणि-
यह श्वेत रंग की मणि सभी प्रकार की चिन्ताओं को दूर करने वाली होती है यह धारण
करने वाले की सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है।इसे ब्रह्मा जी धारण करते हैं।
आ.
कौस्तुभ मणि – भगवान विष्णु के गले की शोभा यह
मणि समुद्र मंथन के समय प्राप्त चौदह रत्नों में से एक है जो सहस्रों सूर्यों की
शोभा से युक्त होती है।
इ.
स्यमन्तक मणि-
नील वर्ण की इंद्रधनुष जैसी शोभा से शोभायमान यह मणि तेज पुंज युक्त होती है तथा
भगवान सूर्य के गले में शोभा पाती है।
ई.
रूद्रमणि- भगवान
नागेन्द्र अर्थात भगवान शिव के गले में शोभित यह मणि स्वर्णिम प्रकाश की तीन
धाराओं से युक्त अत्यधिक चमकदार होती है
2.
पाताल लोक के रत्न :----
जैसा कि आप लोग जानते है कि पाताल
के वासी सर्प होते हैं अतः पूरे संसार के सर्पों का अगर अध्ययन किया जाए तो सर्प
कुल सात रंगों के पाये जाते हैं – काले,
नीले,
पीले,हरे,
मटमेले,सफेद,लाल,
गुलावी,तथा दूधिया उसी प्रकार सर्पों के
पास इन्हीं रंगों की मणियाँ होती हैं जिनके द्वारा ये सर्प अपना सभी कार्य सम्पन्न
करते हैं ये सभी मणियाँ पाताल लोक में सर्पों के राजा नागराज जिसकी पदवी “वासुकी” होती है के पास सुरक्षित हैं।
3.
मृत्युलोक के रत्न :----- कहा जाता है कि राजा बलि जो
देत्यों के राजा थे उनके शरीर से रत्नों की उत्पत्ति हुयी है और इनके शरीर से कुल 21
प्रकार के रत्न प्रकट हुये थे जो
निम्न हैं।
क.
माणिक
ख.
मोती
ग.
प्रवाल
या मूँगा
घ.
पन्ना
ङ.
पुखराज
च.
हीरा
छ.
नीलम
ज.
गोमेद
झ.
लहसुनिया
ञ.
फिरोजा
ट.
चन्द्रकांत
मणि
ठ.
घृतमणि
ड.
तैल
मणि
ढ.
भीष्मक
मणि
ण.
उपलक
मणि
त.
स्फटिक
मणि
थ.
पारस
मणि
द.
उलूक
मणि
ध.
लाजावर्त
मणि
न.
मासर
मणि
ऩ.
ईसव
मणि