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जिन्हैं रत्न या जवाहरात के नाम से बोलते हैं उनमें से हीरा पन्ना गोमेद आदि समतल भूमि की खदानों में
पाये जाते हैं जबकि नीलम पुखराज आदि हिमालय पर्वत की खदानों से प्राप्त होते हैं
लहसुनिया व माणिक नदियों या उनके आस पास के किनारे के खेतों में पाये जाते हैं
मूँगा व मोती समुद्र से निकाले जाते हैं।बहुत से उपरत्न नदी,
समुद्र या समतल भूमि की खदानों से
निकाले जाते हैं। अब आप सोचते होंगे कि रत्न जब खान या समुद्र से इसी रुप में
निकलते होंगे तो ऐसा नही है ये साधारण कंकड़ पत्थर की शक्ल में होते हैं और अपनी
वेडोल अवस्था में इनमें चमक भी नही होती है इसके बावजूद रत्नों के पारखी लोग
इन्हैं इसी वेडोल अवस्था में ही पहिचान लेते हैं। वे ये भी पहिचान लेते हैं कि कौन
सा रत्न है और इसकी क्वालिटी क्या है।फिर भी रत्न की वास्तविक पहिचान तराशने पर ही
हो पाती है मशीनों पर ले जाकर इन वेडोल पत्थरों को तोड़ा जाता है इनके छोटे बड़े
टुकड़े कर दिये जाते हैं फिर इसके बाद इनके तराशने वाले कारीगर ये कोशिश करते हैं
कि नग को बड़े से बड़े आकार में तराशा जाऐ। लैकिन इसके बावजूद भी कुछ टुकड़े हो ही
जाते हैं इन छोटे टुकड़ों को भी साफ सुथरा किया जाता है फिनिसिंग के बाद ही नगों
की सही चमक व क्वालिटी का सही ज्ञान हो पाता है यहाँ यही बात होती है कि बंद
मुठ्ठी लाख की खुल गयी तो खाक की अर्थात जब खदान से पत्थर निकाला गया था तो लगा था
कि बहुत रकम का माल मिला है किन्तु तराशने के बाद इसमें से बहुत सा माल टूट फूट कर
चूरा बन जाता है और जहाँ लगता था कि बहुत बड़ा नग निकलेगा वहाँ छोटे छोटे नग हो
जाते हैं जिनकी कीमत बड़े नग के स्थान पर कई गुना कम होती है फिर इनकी चमक और
क्वालिटी के आधार पर इसका मूल्यांकन किया जाता है।